First Aid Techniques | प्राथमिक चिकित्सा की तकनीकें | B.A./B.Sc./B.Com. 2nd Semester

First Aid Techniques

First Aid Techniques | प्राथमिक चिकित्सा की तकनीकें | B.A./B.Sc./B.Com. 2nd Semester – ड्रेसिंग (Dressing) ड्रेसिंग वह आवरण (Covering) है जिससे घाव या आहत अंग ढका जाता है । इससे खून का बहना , घाव का फैलाव तथा रोगाणुओं से रक्षा की जाती है । 

ड्रेसिंग दो प्रकार से की जा सकती है-

1- सूखी ड्रेसिंग (Dry Dressing)

सूखी ड्रेसिंग का तात्पर्य है कि जब घाव खुला हो- उस पर रोगाणुमुक्त ड्रेसिंग (Sierilized Dressing) करनी हो , खुले या जले घाव या रक्त श्राव की स्थिति में सूखी इसिंग की जाती है । यह ड्रेसिंग रोगाणुमुक्त (Sterilised) मिलती है । यदि इस प्रकार की ड्रेसिंग उपलब्ध न हो तो किसी साफ सफेद कपड़े का प्रयोग करना चाहिए । इसके अभाव में किसी साफ रुमाल का प्रयोग करना चाहिए। ड्रेसिंग करने से पूर्व प्राथमिक चिकित्सक को अपने हाथों को रोगाणु रोधक घोल से अच्छी तरह धो लेना चाहिए । इसके बाद ही रोगाणु रोधक घोल या लोशन से घाव साफ करना चाहिए। घाव के ऊपर ड्रेसिंग रख कर रुई से रख कर पट्टी बांधनी चाहिए ।

2- नम ड्रेसिंग (Wet Dressing)

नम ड्रेसिंग को बन्द घाव पर प्रयुक्त किया जाता है । इसका प्रयोग खुले घाव पर कदापि न करें और न ही रोगाणुरोधक ड्रेसिंग का प्रयोग करें । इसमें ठण्डे पानी की या बर्फ की सेंक (Cold Compress) दी जाती है । बन्द घाव में टिंचर आयोडीन या टिंचर बैन्जोइन का प्रयोग भी नहीं करना चाहिए । आहत अंग पर अन्तः रक्तश्राव या सूजन की स्थिति में नम ड्रेसिंग का प्रयोग किया जाना चाहिए । किसी स्वच्छ तौलिये , रुमाल या वस्त्र को पानी में भिगो कर उसे निचोड़ कर घाव पर रखते रहना चाहिए ।

प्राथमिक सहायता के स्वर्णिम नियम

★ कटने तथा खरोंच का उपचार (Burns & Scalds)

प्राथमिक चिकित्सक को डिटोल या किसी कीटाणु नाशक से अपने हाथ धोकर गॉज रखने के बाद उस पर पट्टी बांध देनी चाहिए ताकि धूल , मक्खी व कीटाणुओं से बचाव हो । जलने व फफोलों का उपचार ( Burns & मामूली जलने पर उस अंग को ठण्डे पानी में डुबा देना चाहिए । गर्म लोहा , बिजली , रस्सी की रगड़ अथवा रसायनों से शरीर का कोई भाग जल सकता है । जबकि गर्म भाष , उबलते पानी , गर्म तेल आदि से जलने पर फफोले पड़ जाते हैं । गम्भीर रूप से जलने व फफोले पड़ने पर रोगी को सदमे से बचायें तथा कम्बल से ढक दें । गर्म चाय दें । फफोले को कदापि न फोड़ें । प्राथमिक सहायक के हाथ साफ हों तथा घाव को न छूएं । घाव को गर्म किये गांज से ढक कर पट्टी बांध दें । डिटोल के घोल से जले घाव को धीरे से साफ करें

★ नकसीर फूटना (Bleeding from the Nose)

नाक से खून बहने पर रोगी को बिठाकर सिर थोड़ा आगे की ओर झुका देना चाहिए । रोगी को स्वच्छ हवा मिलनी चाहिए । हाथों को सिर के ऊपर रख कर गर्दन और सीने के वस्त्र ढीले कर देने चाहिए । रोगी को नाक से सांस न लेकर मुंह से सांस लेनी चाहिए । नाक , गले और रीढ़ शीर्ष पर बर्फ या ठण्डे पानी का प्रयोग करना चाहिए

★ सर्प दंश (Snake Bite)

सर्प के काटने पर तुरन्त डॉक्टर को बुलाना चाहिए । सर्प की पहचान करनी चाहिए । यदि सर्प अधिक जहरीला हो तो तुरन्त कार्यवाही की जानी चाहिए । टूनिकेट या बन्ध का प्रयोग कर जहर को हृदय की ओर जाने से रोकें तथा जहर को बाहर निकालने के लिये तेज धार के चाकू या ब्लेड से + ( धन ) के चिन्ह का कट लगाकर जहर मिश्रित रक्त को बहनें दें । फिर घाव को पोटेशियमपरमेग्नेट से धो डालें । रोगी को गर्म रखें तथा सोने न दें

★ मोच आना (Sprain)

जोड़ों के चारों ओर के अस्थिबन्धन तन्तुओं में खिंचाव आने से फटने से मोच आती है । इस दशा में रोगी के जोड़ों में दर्द होता है । सूजन आ जाती है । रोगी उस अंग को हिला नहीं सकता । मोच आने पर रोगी को हिलने न दें तथा मोच पर कसकर पट्टी बांध दें । ठण्डे पानी से पट्टी को भिगोते रहें ।

★ डंक लगना व काटना (Stings & Bites)

 मधुमक्खी , भौरा , ततैया आदि के काटने पर सर्वप्रथम डंक निकाल लेना चाहिए । सोडियम बाई कार्बोनेट से घाव धोना चाहिए

★ बिच्छू का काटना (Seorpion Bites)

गर्म – पानी में कपड़े की गद्दी भिगोकर दस पन्द्रह मिनट तक बार – बार रखें । लहसुन पीस कर डंक लगे स्थान पर लगा दें ।

पट्टियां (BANDAGE)

पट्टियों का प्रयोग ड्रेसिंग को स्थिर रखने , खपच्ची को स्थिर रखने तथा आहत अंग को हिलने – डुलने से रोकने, आहत अंग को सहारा देने , खून रोकने , सूजन कम करने तथा झोली आदि में किया जाता है ।

पट्टी के प्रकार एवं उपयोग (TYPE OF BANDAGE AND USES )-

पट्टियाँ को उनके आकार के आधार पर मुख्यतया दो भागों में बांटा जा सकता है:-

  1. गोल पट्टी (Roller Bandage):- इसका उपयोग अधिकतर चिकित्सालयों में किया जाता है
  2. तिकोनी पट्टी (Triangular Bandage):- इस पट्टी का प्रयोग अधिकतर प्राथमिक सहायक और स्काउट गाइड करते हैं ।

1- गोल पट्टी (Roller Bandage):-

इस विधि का प्रयोग अधिकतर चिकित्सालयों में होता है क्योंकि यह विधि अधिक लाभकारी है । इसके प्रयोग से ड्रेसिंग अपनी जगह अटल रहती है तथा इसके दबाव से रक्त का बहना रुक जाता है और मोच व खिंचाव को सहारा मिलता है । लम्बी पट्टी सूती कपड़े , गॉज या लिनन से बनाई जाती है । जिसकी लम्बाई 5 मीटर ( 5 गज ) रहती है , भिन्न – भिन्न अंगों पर प्रयोग के अनुसार चौड़ाई भिन्न – भिन्न नाप की रहती है । गोल पट्टी के बाँधने की चार बड़ी विधियाँ हैं :

  • साधारण पेचदारः -यह तभी बाँधी जाती है । जब वह भाग जिस पर इसे बाँधना हो एक – सी मोटाई का हो जैसे कि अंगुली या कलाई तथा अग्रवाह या कुछ भाग कलाई से थोड़ा ऊपर तक । पट्टी इन भागों के आसपास पेच देकर बाँधी जाती है।
  • उलटे पेच की पट्टी : -इस पट्टी में कई पेच दिये जाते हैं तथा प्रत्येक चक्कर में पट्टी अपने ही ऊपर नीचे की ओर उलटा देते हैं । यह पट्टी उन अंगों पर की जाती है जिन पर उनकी मोटाई बदलती जाती है तथा साधारण पेचदार पट्टी करना असम्भव होता है ।
  • अंग्रेजी के आठ अंक के आकार की पट्टी :- इस विधि से पट्टी अंग्रेजी के 8 के आकार में ले जाया जाता है। एक बार उपर और एक बार नीचे कि ओर फंदे 8 के आकार के बन जाते हैं। यह पट्टी जोड़ पर या जोड़ के निकट भाग पर ही कि जाती है। जैसे कि घुटने अथवा केहुनी पर। किसी अंग के लिए इस पट्टी की उल्टी पेंचदार पट्टी के स्थान पर बांधा जा सकता है।
  • स्पाइस (Spice):- यह भी एक प्रकार की “8” के अंक के आकार की पट्टी है जिसमे कंधे ,जांघ या अंगूठे पर बांधी जाती है।

2- तिकोनी पट्टी (Triangular Bandage):-   

तिकोनी पट्टी बनाने के लिए मारकीन अथवा अन्य किसी मजबूत कपड़े का 1×1 मीटर आकार का टुकड़ा लिया जाता है। इसके एक सिरे को सामने वाले दूसरे सिरे से मिलाकर तथा दोहरा करके त्रिभुज की तरह बना लिया जाता है। अब मुड़े हुए स्थान से काटने पर दो तिकोनी पट्टियाँ प्राप्त होती हैं। इनके किनारों को थोड़ा-सा मोड़कर तुरपन कर दी जाती है। तिकोनी पट्टियों को आवश्यकतानुसार निम्न प्रकार से प्रयोग किया जाता है –

  • पूरी खुली पट्टी: यह पीठ, छाती तथा सिर पर बाँधने में प्रयुक्त होती है। इसका प्रयोग सम्पूर्ण रूप में किया जाता है।
  • चौड़ी पट्टी: यह शीर्ष को आधार पर उलट कर तथा पट्टी को दोहरा करके प्रयोग में लाई जाती है। यह झोल डालने या खपच्च बाँधने के काम आती है।
  • संकरी पट्टी: इसे बनाने के लिए दो बार मुड़े शीर्ष-भाग को पुनः तीसरी बार आधार पर रखकर मोड़ देते हैं। अधिक सँकरी करने के लिए इसे पुन: मोड़ा जा सकता है। इसका प्रयोग भी चौड़ी पट्टी के समान किया जाता है।

तिकोनी पट्टी से सम्बन्धित महत्वपूर्ण तथ्य –

  • प्राथमिक चिकित्सा करते समय ज्यादातर तिकोनी पट्टी ही इस्तेमाल में लाई जाती है।
  • सिर की चोट लगने पर तिकोनी पट्टी पानी मे भिगो कर स्कार्फ की तरह कस कर बांध दें और रोगी को अस्पताल ले जाए ।
  • स्लिग या झोल-हाथ की हड्डी के टूटने पर उसे बांह का सहारा देने के लिए तिकोनी पट्टी को बांधकर गले में लटका दी जाती है।
  • तिकोनी पट्टी-प्राथमिक चिकित्सा में सबसे ज्यादा तिकोनी पट्टी ही इस्तेमाल में लाई जाती है क्योंकि तिकोनी पट्टी से कई तरह के काम लिए जा सकते हैं।
  • तिकोनी पट्टी-प्राथमिक चिकित्सा में सबसे ज्यादा तिकोनी पट्टी ही इस्तेमाल में लाई जाती है क्योंकि तिकोनी पट्टी से कई तरह के काम लिए जा सकते हैं।
  • हड्डी टूटने की आशंका होने पर:-यदि हाथ की हड्डी की समस्या है तो एक तिकोनी पट्टी लेकर गले मे बांध दे थैली नुमा हिस्सा आगे लटक जाएगा उसमे हाथ को संभाल कर बैठा दे फिर डाक्टर के पास ले जाएँ ।

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