हड्डी और जोड़ से सम्बन्धित प्राथमिक उपचार | FIRST AID RELATED WITH BONES & JOINT | Latest 1

हड्डी और जोड़ से सम्बन्धित प्राथमिक उपचार | FIRST AID RELATED WITH BONES & JOINT

मानव कंकाल तंत्र

कंकाल तंत्र मानव शरीर को सख्त संरचना या रूपरेखा प्रदान करता है जो शरीर की रक्षा करता है। यह अस्थियों, उपास्थियों, शिरा (टेंडन) और स्नायु/ अस्थिरज्जु (लिगमेंट) जैसे संयोजी ऊतकों से बना है।

हड्डी और जोड़ से सम्बन्धित प्राथमिक उपचार

कंकाल प्रकार -शरीर में मौजूद कंकाल के आधार पर, कंकाल दो प्रकार के होते हैं –

  1. बाहरी (एग्जो) कंकाल: शरीर के बाहरी परत में पाए जाने वाले कंकाल को बाहरी कंकाल कहते हैं । ये मूल रूप से अपरिपक्व बाहरी त्वचा (ectoderm) या मध्यजनस्तर (mesoderm) से बनता है। यह भीतरी अंगों की रक्षा और संरक्षण करता है और मृत होता है । जैसे-  मछलियों के शल्क, कछुए का बाहरी सख्त परत आदि ।
    2. आंतरिक (एंडो) कंकाल: यह कंकाल मानव शरीर के भीतर पाया जाता है और यह मध्यजनस्तर (mesoderm) से बनता है। ये लगभग सभी कशेरुकी जंतुओं में पाया जाता है और शरीर की मुख्य संरचना का निर्माण करता है । 

संरचना के आधार पर आंतरिक कंकाल दो मूल घटकों से बना होता है:

  1. हड्डी: 

यह फाइबर और मैट्रिक्स से बना ठोस, सख्त और मजबूत संयोजी ऊतक है । इसका मैट्रिक्स प्रोटीन से बना होता है और इसमें कैल्शियम और मैगनीशियम की भी प्रचूरता होती है।  हड्डी का मैट्रिक संकेंद्रिक छल्लों के रूपमें होता है जिसे लामेल्ला कहते हैं ।

मोटी और लंबी हड्डियों में खोखले गड्ढ़े जैसी जगह होती हैं, जिन्हें अस्थि गुहा (marrow cavity) कहते हैं । इस गुहा में एक तरल पदार्थ पाया जाता है। इस पदार्थ को अस्थि मज्जा (bone marrow) कहते हैं ।  मध्य हिस्से में अस्थि मज्जा पीले रंग का होता है और हड्डियों के किनारों पर लाल रंग का | इसलिए क्रमशः पीला अस्थि मज्जा और लाल अस्थि मज्जा के नाम से जाना जाता है । लाल अस्थि मज्जा का काम आरबीसी (RBC) बनाना और सफेद अस्थि मज्जा का काम डब्ल्यूबीसी (WBC)  बनाना होता है।

  1. उपास्थि(Cartilage):  

यह विशेष संयोजी ऊतक है जो ठोस और कम संवहिनी नाड़ियों वाला होता है। इसका मैट्रिक्स (matrix) प्रोटीनों से बना होता है और कैल्शियम लवणों की वजह से थोड़ा सख्त हो जाता है लेकिन यह ठोस, चीज के जैसा और मजबूत होता है। साथ ही इसमें थोड़ा लचीलापन भी होता है। इसी कारण उपास्थि हड्डी के जैसा सख्त और कड़ा नहीं होता।   

जैसे – कान के बाहरी हिस्से, नाक की नोक, कंठच्छद, अंतरकशेरुकी डिस्क (intervertebral discs), लंबी अस्थियों के छोरों पर, पसलियों के नीचले हिस्से पर और श्वसननली के छल्लों यानि वायु नली में।

मानव कंकाल तंत्र  विस्तार से चर्चा –

पूरे मानव शरीर के कंकाल में 206 अस्थियां होती हैं और यह मुख्य रूप से दो हिस्सों से बना हैः  

  1. अक्षीयकंकाल (Axial Skeleton– 80 अस्थियां)

वह कंकाल जो शरीर के मुख्य अक्ष का निर्माण करता है अक्षीय कंकाल तंत्र कहलाता है । इसमें प्रमुख हैं –

  • खोपड़ीकी हड्डी
  • मेरुदंड
  • पसलियांएवं 
  • उरोस्थि(sternum) 

हड्डी और जोड़ से सम्बन्धित प्राथमिक उपचार

  • खोपड़ीकी हड्डीमानव की खोपड़ी में 29 अस्थियां होती हैं जिनमें से 8 अस्थियां मानव के मस्तिष्क को सुरक्षा प्रदान करती हैं और खोपड़ी के अस्थि के जोड़ (sutures) से जुड़ी होती हैं। बाकी की अस्थियां मनुष्य का चेहरा बनाती है जिनमें से 14 अस्थियां उल्लेखनीय रूप से प्रतिवादी होती हैं।
  • मेरुदंड(Vertebral Column): यह शरीर की मुख्य धुरी है और एक ऐसे छड़ की तरह दिखती है जो लंबी और मोटी अस्थियों से बना है। यह मनुष्य के शरीर के गठीले सतह में सिर के मध्य से कमर तक पीछे की ओर होता है। यह 33 अस्थियों से मिल कर बनता है और पृष्ठरज्जु (notochord) द्वारा संयोपूर्वक और सुचारू रूप से विकसित होता है। केंद्र में रीढ़ की प्रत्येक अस्थि खोखली होती है।
  • उरोस्थि(Sternum): पसलियों को जोड़ने वाली अस्थि को उरोस्थि कहते हैं और यह मनुष्य के शरीर के छाती के मध्य में होती है। 
  • पसली(Rib): मनुष्य के शरीर में पसलियों की12 जोड़ियां पाई जाती हैं और ये अस्थि की रेशे जैसी संरचना होती है।

 

  1. अनुबंधी / उपबंधकंकाल ( Appendicular Skeleton – 126 bones)

यह तंत्र हाथों और पैरों की अस्थियों एवं उनके अवलंब से बनता है। इसके अंतर्गत कमर, हाथों, पैरों आदि की अस्थियां आती हैं । इसमें प्रमुख हैं –

  • मेखलाएँ
  • पाद अस्थियाँ
  • मेखलाएँ (मेखला) (girdle) :मनुष्य के अक्षीय कंकाल व अनुबंधी कंकाल को जोड़ने वाली अस्थियाँ मेखलाएँ कहलाती है , ये दो प्रकार की होती है –
  • अंश मेखला (pectoral girdle) : यह अक्षीय कंकाल व अग्र पाद (हाथ) को जोड़ने वाली मेखला होती है , अंश मेखला दो प्रथक अस्थियों से निर्मित होती है –
  • जत्रुक (clavicle) :यह सुविकसित , लम्बी , पतली छड रुपी अस्थि होती है , इसका एक सिरा अंस कुट प्रवर्ध से तथा दूसरा सिरा उरोस्थि से जुड़ा रहता है , जत्रुक को कोलर अस्थि भी कहते है |
  • अंस फलक (scapula) :यह चपटी त्रिभुजाकार अस्थि होती है , जो कंधे का भाग बनाती है | इस पर दो उभार होते है , जो क्रमशः अंसकुट प्रवर्ध व अंसतुड प्रवर्ध कहलाते है , इन प्रवार्धो के समीप अंस उलूखल होता है , जिसमे ह्र्मुरस का सिर जुड़ा रहता है |
  • श्रोणी मेखला (pelvic girdle) :यह अक्षीय कंकाल व पच्छ पाद के मध्य उपस्थित होती है , यह तीन अस्थियो – इलियम , इश्चियम व फ्युबिस से मिलकर बनी होती है | तीनो अस्थियां दृढ़ता पूर्वक जुडी रहती है , श्रोणी मेखला में तीनो अस्थियो के दो अर्धांश होते है , प्रत्येक अर्धांश के बाहरी किनारे पर एक खड्डा होता है , जिसे श्रोणी उलूखल कहते है जिसमें फीमर का सिर जुड़ा रहता है |

 

  • पाद अस्थियाँ पैर की अस्थियाँ
  1. फीमर :यह शरीर की सबसे लम्बी अस्थि होती है , यह ऊपर की ओर श्रोणी मेखला से तथा नीचे की ओर टिबिया फिबुला से जुडी रहती है |
  2. टिबिया फिबुला :फीमर के आगे टिबिया फिबुला जुडी रहती है , टिबिया बाहर की ओर व फिबुला अन्दर की ओर स्थित होती है |
  3. गुल्फा अस्थियाँ (टारसल्स) :ये तलवे व टखने की अस्थियां होती है इनकी संख्या 7 होती है , इनके मध्य उपास्थि पायी जाती है |
  4. प्रिपदीकाएं (मेटा टारसल्स) :इनकी संख्या पाँच होती है , ये अगुलि अस्थियो से जुडी रहती है |
  5. अँगुली अस्थियाँ :ये पैर की अँगुलियो की अस्थियाँ होती है , इनकी संख्या 14 होती है |
  6. पटेल्ला (घुटना फलक) :यह घुटने की अस्थि होती है , यह प्याले के समान संरचना की होती है , इसके मध्य इसके छिद्र को जानुफलक कहते है  ।

संधियाँ (joints) :

दो या अधिक अस्थियो के मध्य या अस्थि व उपास्थि के मध्य सम्पर्क स्थल को संधि कहते है , सन्धि के कारण कंकाल गति कर सकता है , गति के आधार पर संधियाँ तीन प्रकार की होती है |

1 – स्थिर या अचल संधि : ऐसी सन्धि में तंतुमय संयोजी उत्तक द्वारा अस्थियाँ दृढ़ता से जुडी रहती है , अस्थियों के मध्य अवकाश नहीं होता है |

उदाहरण – करोटी की अस्थियाँ

2 – आंशिक चल संधि : तनाव व एंठन के कारण अस्थियो में सिमित गति संभव हो पाती है , ऐसी सन्धि को आंशिक चल सन्धि कहते है , यह दो प्रकार होती है –

  1. धुराग्र सन्धि : इसमें पाशर्व गति होती है , जैसे एटलस एक्सिस व कशेरुकाओ के मध्य सन्धि|
  2. विसर्पी संधि : इस सन्धि में अस्थियाँ एक दूसरे पर विर्सपण करती है जैसे – कलाई की सन्धि ,टखने की संधि

हड्डी और जोड़ से सम्बन्धित प्राथमिक उपचार

3  – चल सन्धि : इस संधि से जुडी अस्थियाँ एक या अधिक दिशा में गति कर सकती है , इन अस्थियों के मध्य अवकाश (संधि कोटर) उपस्थित रहता है | इन संधियों पर तरल कचाभ पायी जाती है जो पोषण तथा संधि को स्नेह प्रदान करता है | यह संधि तीन प्रकार की होती है –

  1. कन्दुक खलिका संधि: इस संधि से जुडी अस्थियो में एक अस्थि चारो ओर गति कर सकती है जैसे – कंधे व श्रोणी की संधियाँ |
  2. कब्ज़ा संधि :इस सन्धि से जुडी अस्थियाँ एक दिशा में गति कर सकती है , जैसे : कोहनी , घुटने व अँगुलियो की संधियाँ |
  3. दीर्घ वृतज संधि :इस संधि से जुडी अस्थियाँ एक दूसरे पर सरकर गति कर सकती है जैसे – रेडियस , टखने , व कार्पल्स की संधियाँ |

 

फ्रैक्चर ( हड्डियों में चोट )

फ्रैक्चर तनाव या उच्च प्रभाव बलों के कारण हड्डी का पूर्ण या आंशिक टूटना है। ऑस्टियोपोरोसिस और हड्डी के कैंसर जैसी कुछ चिकित्सीय स्थितियों से पीड़ित लोगों में अस्थि भंग होने का खतरा अधिक होता है ।

फ्रैक्चर के लक्षण

हड्डियाँ किसी दुर्घटना जैसे कि गिरने से या किसी चीज की चपेट में आने से टूट सकती हैं।
टूटी हुई हड्डी (जिसे फ्रैक्चर के रूप में भी जाना जाता है) के तीन सबसे सामान्य लक्षण होते हैं:

  • दर्द
  • सूजन
  • विकलांगता (विकृति)

यदि आपकी कोई हड्डी टूट गई है, तो आप निम्न बातों का अनुभव कर सकते हैं:

  • चोटिल होने पर आपको झटके या चटखने की आवाज सुनाई दे सकती है या महसूस हो सकती है
  • चोटिल हिस्से के आसपास सूजन, खरोंच या संवेदनशीलता हो सकती है
  • चोट की जगह पर वजन डालने, उसे छूने, उसे दबाने, या उसे हिलाने पर आपको दर्द महसूस हो सकता है

फ्रैक्चर के लिए प्राथमिक उपचार

  • सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, टूटी हुई या अव्यवस्थित हड्डी को हिलाने से हड्डी, आसपास की नसों, ऊतकों और रक्त वाहिकाओं को अतिरिक्त नुकसान हो सकता है। इसलिए इसे यथासंभव स्थिर रखें।
  • सुनिश्चित करें कि घायल व्यक्ति सदमे की स्थिति में नहीं है, और हड्डी को स्थिर करने के लिए एक पट्टी का उपयोग करें जब तक कि व्यक्ति को उचित चिकित्सा सहायता न मिल जाए ।
  • यदि कोई खुला घाव है, तो उसे आगे के चिकित्सा उपचार के रास्ते में एक साफ कपड़े या पट्टी से ढक दें ।
  • शरीर के घायल हिस्से को ऊंचा रखें, क्योंकि यह रक्तस्राव और सूजन को कम करने में मदद करता है ।

फ्रैक्चर के लिए कुछ रोकथाम युक्तियाँ

  • उचित जूते पहनना सुनिश्चित करें, खासकर फिसलन और असमान जगहों पर ।
  • मोटरबाइक चलाते समय सुरक्षात्मक गियर, जैसे- हेलमेट, घुटने के पैड आदि पहनना सुनिश्चित करें ।
  • कार चलाते समय सीट बेल्ट जरूर लगाएं ।
  • सीढ़ी का उपयोग सावधानी से करना सुनिश्चित करें ।
  • यदि आप गर्भवती हैं या पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस से पीड़ित हैं, तो अपने डॉक्टर द्वारा दिए गए फ्रैक्चर की रोकथाम के सुझावों का पालन करना सुनिश्चित करें ।

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