Dealing with an emergency and resuscitation | आपात स्थिति में व्यवहार एवं पुनर्जीवन : किसी भी आपातकालीन स्थिति में दिया गया उपचार घायल व्यक्ति की दशा सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जहाँ एक तरफ़ घायल व्यक्ति को जीवित रखने में मदद करता है वहीं दूसरी ओर अस्पताल पहुँचने पर पीड़ित के आगे के इलाज में भी सहायक होता है ।
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Dealing with an Emergency and Resuscitation
प्राथमिक चिकित्सा के लिए हमें चार मुख्य बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए –
- क्षेत्र को सुरक्षित बनाना चाहिए
- घायल व्यक्ति की स्थिति का मूल्यांकन करना चाहिए
- मदद के लिए पुकारना चाहिए
- प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करना चाहिए
1- क्षेत्र को सुरक्षित बनाना – प्राथमिक चिकित्सा का सर्वप्रथम कार्य दुर्घटना वाले क्षेत्र को सुरक्षित बनाना चाहिए जिसके लिए निम्न बिन्दुओं का ध्यान रखना चाहिए
- यातायात नियमों का पालन करें
- दुर्घटना स्थल के दोनों तरफ़ 30 मीटर की दूरी पर चेतावनी बोर्ड लगाए ।
- आपातकालीन परिस्थितियों से निपटने हेतु एम्बुलेंस फायर ब्रिगेड पुलिस तत्कालिन परिस्थिति के अनुसार उनकी मदद ले ।
- दुर्घटना में शामिल प्रत्येक वहाँ के इंजनको बंद कर देना चाहिए ।
- घायल व्यक्ति को ज़्यादा हिलाना डुलाना नहीं चाहिए ।
2- घायल व्यक्ति की स्थिति का मूल्यांकन करना – घायल व्यक्ति की जाँच करें कि वह होश में है और सामान्य रूप से साँस ले रहा है या नहीं है न यदि आवश्यक हो तो घायल व्यक्ति को सामान्य रूप से सांस लेने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ और प्रोटोकॉल के अनुसार प्रयास करना चाहिए ।
3- मदद के लिए पुकारना- जब एक बार बीमार या घायल व्यक्ति की स्थिति का मूल्यांकन कर लिया जाए तब यह तय किया जाता है कि सहायता की तत्काल आवश्यकता है या नहीं यदि मदद की ज़रूरत है तो पास खड़े किसी व्यक्ति से मदद के लिए फोन कॉल करने की कहना चाहिए ।
4 – प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करना- प्राथमिक चिकित्सा के मानक प्रोटोकॉल के अनुसार प्राथमिक उपचार शीघ्र अतिशीघ्र परंतु सावधानीपूर्वक दी जानी चाहिए । प्राथमिक चिकित्सा के सामान्य नियम के अनुसार गंभीर रूप से घायल, जी मिचलाने, नींद आने या बेहोशी में पढ़ने वाले व्यक्ति को कुछ भी खाने पीने के लिए नहीं दिया जाना चाहिए । किन्तु यह नियम हाइपोथर्मिया हाइपो-ग्लीकेमिक, डायरिया और बुख़ार के कारण निर्जलीकरण में लागू नहीं होता है ।
प्राथमिक चिकित्सा देना कब बंद करें ?
प्रायः यह प्रश्न उठता है कि एक प्राथमिक कार्यकर्ता को प्राथमिक चिकित्सा कब तक करनी चाहिए प्राथमिक उपचार में पुनर्जीवन एक जीवन रक्षक गतिविधि है, लेकिन ऐसे चार कारण तब CPR देने की प्रक्रिया को रोका जा सकता है –
- यदि घायल व्यक्ति सामान्य स्वाँस लेना प्रारंभ कर दें ।
- यदि प्राथमिक चिकित्सा में प्रशिक्षित कोई अन्य व्यक्ति या पेशेवर चिकित्सक कार्यभार संभाल लेता है ।
- यदि CPR देते देते बहुत अधिक थकान हो जाती है ।
- यदि परिस्थिति असुरक्षित हो जाती है ।
प्राथमिक उपचार का ABC और DRABC
प्राथमिक चिकित्सा में ABC और DRABC सामान्यतः बहुतायत में प्रयुक्त होते हैं इन्हें किसी आपात स्थिति में प्राथमिक उपचार करता द्वारा दिया जाने वाला प्रारंभिक सर्वेक्षण के रूप में भी जाना जाता है । ABC और DRABC प्राथमिक सर्वेक्षण प्रक्रिया के चरणों का संक्षिप्त नाम है।
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ABC क्या है ? | What is the ABC ?
ABC –
पहला A (AIRWAY) – श्वासनली की जाँच – श्वासनली में रुकाव खासकर बेहोश लोगों में जीभ के कारण हो सकता है। बेहोशी के बाद मुहँ के मांसपेशियों में ढीला पड़ने के कारण जीभ गले के पिछले भाग में गिर जाता है जिससे श्वासनली ब्लाक हो जाता है। श्वासनली की जाँच करने के लिए सबसे पहले अपनी उँगलियों की मदद से जीभ को उसकी जगह पर खिंच लायें।
दूसरा B (BREATHING) – सांस की जाँच – सबसे पहले अपने कान को घायल व्यक्ति के मुह के पास ले जा कर सुनें, देखें और महसूस करें। छाती को ध्यान से देखें , ऊपर निचे हो रहा है या नहीं। अगर वह सांस नहीं ले रहा हो तो उसी समय Mouth to Mouth Respiration चालू करें।
तीसरा C (CIRCULATION) – रक्तसंचार की जाँच – अब बारी है रक्तसंचार की जाँच करने की। सबसे पहले घायल व्यक्ति के नाड़ी की जाँच करें। जाँच करने के लिए कैरोटिड आर्टरी को ढूँढें । यह artery गर्दन के कोने में कान के नीचें होती है आप अपनी उँगलियों को वहां रख कर जाँच कर सकते हैं। पल्स की जाँच करने के लिए 5-10 सेकंड लगते है।
DRABC –
DRABC, ABC का बृहद रूप है जिसमे D से DANGER और R से RESPONSIBILITY जोड़ दिया गया है ।
D – DANGER (खतरा)
सबसे पहला कदम स्थिति के समग्र खतरे का आकलन करना है और क्या यह आपके या अन्य व्यक्तियों के लिए घटनास्थल पर पहुंचना सुरक्षित है।
स्थान का आकलन करें, किसी भी खतरे की पहचान करें और संभावित खतरों को दूर करें। पहले अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यदि आप घटनास्थल पर पहुंचने का प्रयास करते समय घायल हो जाते हैं तो आप दूसरों की मदद नहीं कर सकते।
R – RESPONSIBILITY (जवाबदेही)
उनकी चेतना के स्तर को निर्धारित करने के लिए पीड़ित की प्रतिक्रिया की जाँच करें। सामने से उनके पास जाओ और उनके कंधों को मजबूती से थपथपाओ और पूछो, “क्या तुम ठीक हो ?”
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नवीन दिशा निर्देश – CAB
2010 में American Heart Association द्वारा प्राथमिक चिकित्सा हेतु नवीन दिशा निर्देश जारी किए गए इसके अंतर्गत ABC निष्पादित करने के क्रम को CAB में बदल दिया गया है
- CIRCULATION, रक्तसंचार की जाँच
- AIRWAY श्वासनली की जाँच
- BREATHING सांस की जाँच
सी.पी.आर. – कार्डियो पल्मोनरी रिससिटेशन (CPR – CARDIO PULMONARY RESUSCITATION)-
सी.पी. आर. (CPR) का मतलब है कार्डियो पल्मोनरी रिससिटेशन। यह भी एक तरह की प्राथमिक चिकित्सा यानी फर्स्ट एड है। जब किसी पीड़ित को सांस लेने में दिक्कत हो या फिर वो सांस न ले पा रहा हो और बेहोश जो जाए तो सी.पी. आर. (CPR) से उसकी जान बचाई जा सकती है। बिजली का झटका लगने पर, पानी में डूबने पर और दम घुटने पर सी.पी. आर. (CPR) से पीड़ित को आराम पहुंचाया जा सकता है। हार्ट अटैक यानी दिल का दौरा पड़ने पर तो सबसे पहले और समय पर सी.पी. आर. (CPR) दे दिया जाय तो पीड़ित की जान बचाने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
Dealing with an Emergency and Resuscitation
अगर किसी पीड़ित को दिल का दौरा पड़ जाय तो सबसे महत्वपूर्ण है कि प्राथमिक चिकित्सा देने वाला व्यक्ति खुद ना घबराए और पूरा धैर्य रखे। किसी भी तरह की फर्स्ट एड देने से पहले एंबुलेंस को कॉल करे या फिर हॉस्पिटल को सूचित करे की आप बहुत ही कम समय में हार्ट अटैक के मरीज को लेकर वहां पहुंचने वाले हैं।
पीड़ित के हाल की जांच तुरंत करें। ये देखने की कोशिश करें कि मरीज होश में है कि नहीं। उसकी सांस चल रही है कि नहीं। अगर उसकी सांस चल रही है तो मरीज को आराम से बिठायें और उसे रिलैक्स कराएं। मरीज के कपड़ो को ढीला कर दे। अगर मरीज को पहले से ही हार्ट की समस्या है और वो कोई दवाएं लेता हो , तो पहले उसे वही दवा दें जो वो लेता रहा है।
यदि मरीज को होश नहीं आ रहा हो, उसके दिल की धड़कने बंद हो गयी हो या साँस नहीं चल रही हो तो सी.पी. आर. (CPR) प्रक्रिया अपनाएं।
कैसे देते हैं सी.पी. आर. (CPR)
- सी.पी. आर. (CPR) क्रिया करने में सबसे पहले पीड़ित को किसी ठोस जगह पर लिटा दिया जाता है और प्राथमिक उपचार देने वाला व्यक्ति उसके पास घुटनों के बल बैठ जाता है।
- उसकी नाक और गला चेक कर ये सुनिश्चित किया जाता है कि उसे सांस लेने में कोई रुकावट तो नहीं है। जीभ अगर पलट गयी है तो उसे सही जगह पर उंगलियों के सहारे लाया जाता है।
- सी.पी. आर. (CPR) में मुख्य रुप से दो काम किए जाते हैं। पहला छाती को दबाना और दूसरा मुँह से सांस देना जिसे माउथ टु माउथ रेस्पिरेशन कहते हैं। पहली प्रक्रिया में पीड़ित के सीने के बीचोबीच हथेली रखकर पंपिंग करते हुए दबाया जाता है। एक से दो बार ऐसा करने से धड़कनें फिर से शुरू हो जाएंगी। पंपिंग करते समय दूसरे हाथ को पहले हाथ के ऊपर रख कर उंगलियो से बांध लें अपने हाथ और कोहनी को सीधा रखें।
- अगर पम्पिंग करने से भी सांस नहीं आती और धड़कने शुरू नहीं होतीं तो पम्पिंग के साथ मरीज को कृत्रिम सांस देने की कोशिश की जाती है।
- ऐसा करने के लिए हथेली से छाती को 1 -2 इंच दबाएं, ऐसा प्रति मिनट में 100 बार करें। सी.पी. आर. (CPR) में दबाव और कृत्रिम सांस का एक खास अनुपात होता है। 30 बार छाती पर दबाव बनाया जाता है तो दो बार कृत्रिम साँस दी जाती है। छाती पर दबाव और कृत्रिम साँस देने का अनुपात 30 :02 का होना चाहिए। कृत्रिम सांस देते समय मरीज की नाक को दो उंगलियों से दबाकर मुंह से साँस दी जाती है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि नाक बंद होने पर ही मुंह से दी गयी सांस फेफड़ों तक पहुंच पाती है।
- सांस देते समय ये ध्यान रखना है कि फर्स्ट एड देने वाला व्यक्ति लंबी सांस लेकर मरीज के मुंह से मुंह चिपकाए और धीरे धीरे सांस छोड़ें। ऐसा करने से मरीज के फेफड़ों में हवा भर जाएगी। इस प्रक्रिया में इस बात का भी ध्यान रखना होता है कि जब कृत्रिम सांस दी जा रही है तो मरीज की छाती ऊपर नीचे हो रही है या नहीं। ये प्रक्रिया तब तक चलने देनी है जब तक पीड़ित खुद से सांस न लेने लगे। जब मरीज खुद से साँस लेने लगे, तब ये प्रकिया रोकनी होती है।
- सी.पी. आर. (CPR) अगर किसी बच्चे को देनी है तो विधि में थोड़ा सा बदलाव होता है। बच्चों की हड्डियों की शक्ति बहुत कम होती है इसलिए दबाव का विशेष ध्यान रखा जाता है। अगर 1 साल से कम बच्चों के लिए सी.पी. आर. (CPR) देना हो तो सी.पी. आर. (CPR) देते वक़्त ध्यान रखे 2 या 3 उंगलियों से ही छाती पर दबाव डालें और छाती पर दबाव और कृत्रिम सांस देंने का अनुपात 30 :02 ही रखें।
सी.पी. आर. (CPR) 10 है विकसित तकनीक
सी.पी. आर. (CPR) से भी नई तकनीक सी.पी. आर. (CPR) 10 आज देश में उपलब्ध है। इस तकनीक का अविष्कार भारत में ही किया गया है। भारत के ही डाक्टर पद्मश्री डॉक्टर के.के अग्रवाल ने इस तकनीक का आविष्कार किया है। ये तकनीक परंपरागत सी.पी. आर. (CPR) से कहीं ज्यादा प्रभावी और व्यवहारिक मानी जाती है। इस तकनीक की सबसे खास बात ये है कि इसमें मुंह से कृत्रिम सांस देने के बजाय सिर्फ उंगलियों के दबाव के माध्यम से सी.पी. आर. (CPR) दिया जाता है।
इस प्रक्रिया को दिल का दौरा पड़ने के पहले 10 मिनट में ही किया जाता है। इस प्रक्रिया में हाथ से इस तरह से छाती पर दबाव बनाया जाता है कि दिल सीने की हड्डियों और रीढ़ की हड्डी के बीच दबे । ये तबतक किया जाता है जब तक चिकित्सकीय सुविधा न मिल जाय या फिर व्यक्ति जिंदा हो जाय या फिर इलेक्ट्रिक शॉक देने वाले यंत्र तक पीड़ित पहुंच न जाय।
इसके लिए सिर्फ छाती पर दबाव बनाना है पर ये 100 दबाव प्रति मिनट की रफ्तार से करना होता है। दबाव बनाने के लिए तकनीक वही है जो सी.पी. आर. (CPR) में है बस मुंह से मुंह को सांस नहीं देनी है। कई बार सी.पी. आर. (CPR) 10 से पहले पीड़ित की छाती पर एक फिट की दूरी से दो मुक्के मारने की भी सलाह दी जाती है। उसके बाद सी.पी. आर. (CPR) 10 शुरु किया जाता है।
क्या है सी.पी. आर. (CPR) का महत्व
दिल का दौरा पड़ने पर पहले एक घंटे को गोल्डन ऑवर माना जाता है। इसी गोल्डन ऑवर में हम मरीज की जान बचा सकते है। कभी कभी एंबुलेंस या मेडिकल सुविधा किसी कारण उपलब्ध नहीं होती है। ऐसे समय में सी.पी. आर. (CPR) किसी भी पीड़ित के लिए संजीवनी का काम कर सकता है।
दरअसल सी.पी. आर. (CPR) में हम सांस चलाने के काम और खून के बहाव को लगातार जारी रखने की कोशिश करते हैं। अगर किसी पीड़ित को 3-5 मिनट तक सांस नहीं आती तो उसके ब्रेन सेल मृत होना शुरु हो जाते हैं। अगर किसी पीड़ित को 10 मिनट तक सांस नहीं आ रही हो और प्राथमिक उपचार के तहत हम उसे कृत्रिम साँस न दे पाएं तो मरीज के बचने की संभावना बहुत कम हो जाती है।
इस तरह आप किसी ऐसे व्यक्ति की जान बचा सकते हैं जो दम घुटने, पानी में डूबने, दिल का दौरा पड़ने की वजह से अपनी धड़कने खो चुका है। इस दौरान कुछ सावधानियां भी बरतनी है। जैसे इस दौरान मरीज को अकेला बिल्कुल नहीं छोडना चाहिए। और डाक्टर के द्वारा निर्देशित दवा के आलावा मरीज को दूसरी कोई दवा नहीं दी जानी चाहिए।
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